कटघोरा–्बांगो:- छत्तीसगढ़ की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से खेती पर आधारित है। कृषि कार्यों के लिहाज से छत्तीसगढ़ में धान की खेती के बाद अब किसानों का फिश फार्मिंग यानी मछली पालन पर पूरा ध्यान जा रहा है। जिसे लेकर छत्तीसगढ़ में राज्य सरकार की ओर से मछली के बेहतर गुणवत्ता वाले बीज का उत्पादन करने पर खास जोर दिया जा रहा है। इसी के तहत छत्तीसगढ़ राज्य स. मत्स्य महासंघ, मत्स्य बीज प्रक्षेत्र एतमानगर में बेहतर गुणवत्ता का कतला, रोहू, मिरेकल प्रजाति के मछली बीज का उत्पादन किया जा रहा है। जिसकी खरीदी जिले भर के मछली पालक व किसान कर रहे है। इसके अतिरिक्त उड़ीसा, मध्यप्रदेश में भी एतमानगर के मत्स्य बीज की डिमांड बढ़ने लगी है।
छत्तीसगढ़ सरकार के जनकल्याणकारी योजनाओं में से एक इस योजना में मछली पालन के लिए बिजली, पानी और अन्य सुविधाएं रियायती दरों पर अबाध रूप से दिए जाने के कारण मछली पालन की ओर अधिकाधिक किसानों का रुझान देखने को मिल रहा है। और इससे जुड़े लोग बेहतर गुणवत्ता का बीज लेकर मछली पालन में सक्षम होते हुए आर्थिक रूप से मजबूत भी हो रहे हैं। भूपेश सरकार की भी दलील है कि इसके पीछे राज्य में मछली पालन को खेती का दर्जा देने का क्रांतिकारी फैसला मुख्य वजह साबित हुआ है। इसी वजह से छत्तीसगढ़ मछली बीज उत्पादन के मामले में अब आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडु और कर्नाटक के बाद 5वां बड़ा राज्य बन गया है। वहीं सरकार की ओर से राज्य में मछली पालन को खेती का दर्जा दिए जाने के बाद मछली के बीज का उत्पादन करने की लागत में भी काफी कमी आई है। इसकी मुख्य वजह खेती का दर्जा मिलने के कारण मछली पालकों को अन्य किसानों की तर्ज पर सस्ती दरों पर बिजली, मुफ्त पानी और निम्न ब्याज पर लोन भी मिलने लगा है। इससे मछली पालकों की आय भी बढ़ी है और छत्तीसगढ़ मछली के बीज का उत्पादन करने के मामले में अग्रणी उत्पादक राज्य बन गया है। जिसके फलस्वरूप मछली पालन के क्षेत्र से जुड़े निजी शोध संस्थान भी छत्तीसगढ़ में काम करने के लिए आगे आए हैं। मत्स्य बीज प्रक्षेत्र एतमानगर में बीज उत्पादन के लिए एक चाइनीज हेचरी, एक बिडिंग पुल, 4 प्रजनन पोखर, 15 सवर्धन पोखर व 2.5 हेक्टेयर के जल क्षेत्र होने से लक्ष्य के अनुरूप मछली बीज का उत्पादन एवं बिक्री हो रहा है। जहां से बीज लेकर इसका पालन करने वाले पाली विकासखण्ड के ग्राम जेमरा (बगदरा) निवासी सहसराम धनुहार ने बताया कि पहले वह कलकत्ता से आपूर्ति वाले मछली बीज की खरीदी कर इसका पालन करता था, तब उसे गुणवत्तापूर्ण बीज नही मिलता था। जिसके कारण आय के स्रोत भी कम था लेकिन जब से उसने एतमानगर मत्स्य बीज प्रक्षेत्र से बीज लेना प्रारम्भ किया है, बेहतर गुणवत्ता का बीज होने के कारण मछली उत्पादन में इजाफा हुआ है और आय में भी बढ़ोतरी हुई है। वहीं पोड़ी उपरोड़ा ब्लाक अंतर्गत कुम्हारी दर्री निवासी बेनसिंह श्याम का कहना है कि पहले वह केवल मछली का व्यवसाय करता था, किंतु जब उसने अनेक किसानों को मछली पालन करते देखा तब उसे भी विचार आया कि वह भी मछली पालन करेगा और छत्तीसगढ़ राज्य स. मत्स्य महासंघ एतमानगर के अधिकारियों से संपर्क साध योजना की जानकारी लेने उपरांत खुद के जमीन पर डबरी का निर्माण करा मछली पालन व बिक्री का व्यवसाय कर रहा है जिससे उसे अब दोहरा लाभ मिल रहा है। मत्स्य पालन योजना से जुड़कर जिले भर के अनेक महिला स्व. सहायता समूह भी अपनी- अपनी आर्थिक स्तर सुदृढ़ कर रही है। पोड़ी उपरोड़ा विकासखण्ड के बंजारी की जय माँ बंजारी दाई महिला स्व. सहायता समूह द्वारा भी गत 3 वर्ष से मत्स्य पालन कर रही है, जहां एतमानगर से स्पान (जीरा साइज) बीज लेकर और उसे फिंगर (डेढ़ से दो इंच) साइज बढ़ाकर बिक्री करते हुए सालाना लाखों कमा रही है। इस विषय पर यहां के प्रबंधक डी.आर. तांजे ने बताया कि अच्छे गुणवत्ता के कतला, रोहू, मिरेकल बीज उत्पादन कर स्पान को 1 हजार रुपए में 1 लाख बीज व फिंगर 1 हजार बीज की कीमत 15 से 18 सौ तथा स्पान मिक्स एक लाख बीज संख्या की कीमत 6 सौ 50 रुपए निर्धारित किया गया है। वहीं यहां के सहायक मत्स्य अधिकारी डी.के. वर्मा ने बताया कि गुणवत्तापरख मछली बीज उत्पादन से इसकी बिक्री जिले भर सहित बलरामपुर, कोरिया, सूरजपुर, जशपुर, जांजगीर- चाम्पा, सक्ति, बिलासपुर जिले सहित छत्तीसगढ़ से बाहर ओड़िसा, मध्यप्रदेश राज्य में भी भारी मांग है। ऐसे में राज्य शासन के मछली बीज उत्पादन योजना से इसके पालन और मार्केटिंग तक इससे जुड़े लोग प्रगति कर रहे है और उनके आय में चार गुना वृद्धि हुई है।
*सुरक्षा की दृष्टि से फेंसिंग कार्य नही, मछलियों की हो रही चोरी*
2.5 हेक्टेयर में निर्मित तालाब डबरी से मछलियों की चोरी भी खूब हो रही है। जिसे लेकर सहायक मत्स्य अधिकारी श्री वर्मा ने बताया कि मत्स्य बीज प्रक्षेत्र में तार फेंसिंग का कार्य नही होने के कारण तालाब, डबरी के प्रजजन बड़ी मछलियों की चोरी की जा रही है जहां रात में बाहरी तत्व छोटी जाल के माध्यम से मछली फंसाकर ले जाते है जिससे फार्म को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि इस दिशा में शासन- प्रशासन को अवगत करा फेंसिंग (घेराव कार्य) के लिए राशि का मांग किया जा चुका है, किंतु अबतक इस दिशा में पहल नही हो पाया है। जिससे मछली चोरी जारी है।
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