छ,ग—- स्वस्थ लोकतंत्र के लिए मतदाताओं का ईमानदार होना आवश्यक ही नहीं बल्कि अनिवार्य भी है। वैसे तो भारत पूरे विश्व में सबसे बड़ा लोकतंत्र है और भारत जैसा कोई देश नहीं। यहां अनादि काल से ही लोकतंत्र की छाप दिखाई देती है। इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो सतयुग में भगवान राम ने स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना की थी, जहां पर भगवान राम ने जनता को सर्वोपरी माना। भरत ने जनता के लिए एक सेवक के रूप में राजा का धर्म निभाया।
उसके बाद भगवान कृष्ण ने भी जनता को अपनी जीवनशैली में केन्द्र बिन्दु में रखा। आजादी के पहले की बात करें तो भारत में लोकतंत्र की छाप तो थी, लेकिन भारतवंशी राजा जनता के लिए सबकुछ करते रहे और उसके बाद भारत 200 वर्षों तक गुलाम रहा और तब यहां लोकतंत्र विलुप्त हो गया और जो भी यहां पर शासन किया उसमें सिर्फ जनता का मर्दन हुआ। 200 साल की गुलामी ने आम जनता को त्रस्त कर दिया था और धीरे-धीरे हमारे महापुरूषों के नेतृत्व में जनता जागरूक हुई और देश स्वतंत्र हुआ। स्वतंत्रता के बाद हमारे महापुरूषों ने एक स्वस्थ लोकतंत्र की स्थापना की और एक अक्षुण्ण संविधान का निर्माण हुआ, जिसमें शासन को जनता के द्वारा, जनता के लिए बनाया गया और देखते ही देखते भारत सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ-साथ एक स्वस्थ लोकतंत्र बना। धीरे-धीरे स्वस्थ लोकतंत्र में व्यवसायिक राजनीति घुस गई और स्वस्थ लोकतंत्र में भ्रष्टतंत्र जैसा धब्बा शब्द जुड़ गया जो दीमक की तरह भारत की छवि को खराब कर रहा है। देश को लूटने वाले राजनीति में घुस गए और जनता उपेक्षित होने लगी।
आज ईमानदार मतदाता ही लोकतंत्र को भ्रष्टतंत्र से बचा सकते हैं, इसके लिए कुछ समाजसेवी संगठन जागरूकता अभियान भी चला रहे हैं लेकिन आज चुनाव कुबेर के हाथों में पहुंच चुका है और धनबल से भ्रष्ट और दागदार छवि के लोग सरकारी तंत्र में अपना दबदबा बना रहे हैं। इसमें मतदाता भी दोषी हैं, क्योंकि चुनाव के समय कुबेर की कोठी से ये मतदाता भी दाना चुगने से नहीं चुकते और एक स्वस्थ लोकतंत्र की परिकल्पना अब एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी है। यह संभव से परे नहीं है, लेकिन आमजनता को भी ईमानदारी दिखानी होगी और अपना प्रतिनिधि चुनते समय उसके बेकग्राउंड पर भी नजर रखनी होगी। शिक्षित और ईमानदार प्रतिनिधि जब चुनकर लोकसभा, राज्यसभा एवं विधानसभाओं में पहुंचेंगे तो देश और प्रदेश की तस्वीर देखकर दुनिया भी हतप्रभ हो जाएगी।
हमें ऐसे लोगों के बहकावे में भी नहीं आना है जो चुनाव से पूर्व बड़े-बड़े वादे तो करते हैं, लेकिन सत्ता में आते ही अपने ही घोषणापत्र को रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं और तब जनता ठगी महसूस करती है। हमें ऐसे राजनीतिक दलों से पूछना चाहिए कि आपने जो घोषणा पत्र तैयार किया है, उसे पूरा करने के लिए आपके पास संसाधन और साधन कैसे निकलेंगे।
कुछ राजनीतिक दल कुछ घोषणाओं को पूरा तो करते हैं लेकिन वे आम जनता को कर्ज में डूबा भी देते हैं। प्रदेश की सरकारें विश्व बैंक से इतना ऋण लेते हैं कि उसका किश्त चुकाने में सरकारी खजाना खाली कर देते हैं और विकास कार्य अवरूद्ध सा हो जाता है, साथ ही प्रति व्यक्ति का ऋण कई गुना बढ़ जाता है और प्रदेश की छवि एक ऋणी प्रदेश की भांति बन जाती है।
सत्ता के लिए आज देश और कई प्रदेशों में साम, दाम, दंड, भेद की नीति जो अपनायी जा रही है, वह स्वस्थ लोकतंत्र के लिए घातक भी है। हालांकि राजनीति में साम, दाम, दंड, भेद को अवैधानिक करार अब तक नहीं दिया जा सका है और राजनीतिक दल इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं। खरीद फरोख्त भी राजनीति में अवैध तो है लेकिन कुछ राजनीतिक दल इससे गुरेज नहीं करते। इन कुछ सालों में ऐसा परिदृश्य देखने को मिला और इससे आश्चर्य भी नहीं हुआ। कुबेर की कोठी से करोड़ों की करंसी जब निकलती है तो आवाज भी नहीं आती और राजनेता व्यवसाय को ईमानदारी का तमगा पहना देते हैं। धन्य हैं ! ऐसे राजनेता जो पार्टीधर्म को एक तरफ रखकर व्यक्ति धर्म को सर्वोपरी मानते हैं। ऐसे राजनेताओं से राष्ट्र का भला नहीं होने वाला और ना ही पार्टी का। आज जिस तरह से माहौल क्रिएट किए गए हैं, उससे लगता है कि ईमानदार जनप्रतिनिधियों पर व्यवसायिक प्रतिनिधि हावी हो गए हैं। हमें ऐसे राजनेताओं को पहचानना पड़ेगा और ऐसे बीमारियों का ईलाज भी करना पड़ेगा। चुनाव ही एक ऐसा माध्यम है, जिसके बल पर हम व्यवसायिक जनप्रतिनिधियों के स्थान पर ईमानदार सेवक चुनें और भ्रष्ट्रतंत्र को उखाड़ फेंके।
व्यवसायिक राजनेताओं की पोल भी खुल रही है और कई तो जेल के सलाखों के अंदर ऐश कर रहे हैं। दूसरी तरफ देखें तो सत्ता लोलुप राजनीतिक दल धर्म को भी लड़ाने में कोई गुरेज नहीं करते। हिंसा और नफरत फैलाकर सत्ता प्राप्ति आज राजनीतिक दलों का टै्रंड बन गया है और हिन्दुस्तान में रहने वाले सर्वधर्म संभाव को तहस-नहस कर अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं। हिंसा से आखिर किसका नुकसान होता है? भोलीभाली जनता मारी जाती है और उसमें भी राजनीतिक दल से जुड़े व्यवसायिक राजनेता राजनीति करते हैं और एक दूसरे को नीचा दिखाकर जनता का हमदर्द बन जाते हैं। आखिर वे कौन लोग हैं? जो धार्मिक सद्भाव को बिगाड़ते हैं, ऐसे लोगों की पहचान भी जरूरी है, तभी भारत का भविष्य उज्ज्वल होगा और तब जनता की प्राथमिकता तय होगी। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर कभी ऊंगली न उठे, तभी चुनाव को निष्पक्ष माना जाएगा और भारत का भाग्य बदलने वाले मतदाता सुदृढ़ और सजग होंगे।
आज भारत युवा हो चुका है और युवाओं की संख्या अन्य वर्ग से काफी बड़ी है। शिक्षित युवा जब राजनीति में आयेंगे और ईमानदारी की कसावट से देश के निर्माण में लग जाएंगे तो भारत आकाश की बुलंदियों को छुएगा और वह दिन दूर नहीं जब फिर से भारत विश्व शिखर पर अपनी नेतृत्व क्षमता को दुनिया के सामने रखेगा। तब भारत फिर से विश्व का नेतृत्व करेगा। भारत वह देश है, जहां पर शून्य की सबसे पहले उत्पत्ति हुई और शून्य से ही गणित का निर्माण हुआ और गणित ही किसी भी राष्ट्र निर्माण का आधार स्तंभ है। भारत प्रतिभाओं का देश है, जहां पर मां भारती के गर्भ में अकूत प्राकृतिक संपदा भरी हुई है और हम जनबल में भी किसी से कम नहीं। हम ईमानदार मतदाता, ईमानदार राजनेता, ईमानदार जनसेवक बनकर मां भारती के माथे पर भ्रष्टतंत्र की शिकन को सदा के लिए हटा सकते हैं और एक अमिट हस्ताक्षर से देश की कायाकल्प कर सकते हंै।
जन जन की आवाज़