Chanakya Niti:- जैसा शरीर, वैसा ही ज्ञान

शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ

आप में से लगभग लोगों ने सुना होगा कि सच कड़वा होता है। शायद यही कारण है कि आचार्य चाणक्य की कही हुई बातें लोगों को कई बार परेशान कर देती हैं। क्योंकि उनके विचार कठोर और सत्य होते हैं। परंतु कहते हैं जो व्यक्ति अपने जीवन में इनकी बातों को अपनाता है उसका जीवन सफल तो होता है साथ ही साथ वह काफी तरक्की पाता है। आज हम आपको चाणक्य द्वारा बताई गई ऐसी ही कुछ बातों से रूबरू करवाने जा रहे हैं। तो चलिए जाते हैं आचार्य चाणक्य के नीति श्लोक भावार्थ व अर्थ सहित-

चाणक्य नीति श्लोक-
न वेदबाह्यो धर्म:।
भावार्थ  ‘वेद’ से बाहर कोई धर्म नहीं
अर्थ : यहां आचार्य चाणक्य ने वेदों द्वारा धर्म को ही धर्म कहा है। उनका तात्पर्य हिन्दू धर्म से है।

न कदाचिदपि धर्म निषेधयेत।
भावार्थ : ‘धर्म’ का विरोध  कभी न करें
अर्थ : धर्म हमारे जीवन में शुद्ध विचारों और सद्कर्मों को जन्म देता है। इसका विरोध करके हम अपने जीवन को नरकमय बना लेते हैं इसलिए धर्म का विरोध कभी न करें।

यथा शरीरं तथा ज्ञानम्।
भावार्थ : जैसा शरीर, वैसा ही ज्ञान
अर्थ : प्रत्येक व्यक्ति के शरीर का आकार-प्रकार विभिन्न प्रकार का होता है। बहुत से व्यक्तियों के शरीर को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि वे कितने बुद्धिमान हैं परंतु उसे मानदंड के रूप में स्वीकार करना कठिन है।

यथा बुद्धिस्तथा विभव:।
भावार्थ : जैसी बुद्धि, वैसा ही वैभव
अर्थ : आदमी के जीवन में सत्, रज और तम तीन गुण पाए जाते हैं। सत से सात्विक एवं श्रेष्ठ, रज से राजसिक अर्थात भोग-विलास से युक्त और तम से तामसिक अर्थात दुष्ट विचारों से भरा जीवन। इन तीनों में से आदमी जैसा ज्ञान अपने लिए चुनता है, उसके जीवन का स्वरूप भी उसी के अनुसार बन जाता है।