शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
‘चाणक्य नीति सूत्र’ से जुड़े कुछ अंश यहां प्रस्तुत किए जा रहे हैं। जिन्हें आप अपने रोजमर्रा के जीवन में अपनाकर बहुत सारे संकटों से निजात पा सकते हैं। आचार्य चाणक्य की नीतियां आज भी उतनी सार्थक हैं, जितनी वो कल थी।
देवता का कभी अपमान न करें
न कदापि देवताऽवमंतका।
भावार्थ: जिन देवी-देवताओं की मूर्तियों को मंदिर में रख कर पूजा जाता है, उनका कभी अपमान नहीं करना चाहिए। इससे लोगों की भावनाएं आहत होती हैं। इसी प्रकार भले लोगों का भी अपमान नहीं करना चाहिए।
आंखों के समान कोई ‘ज्योति’ नहीं न चक्षुष: समं ज्योतिरस्ति।
भावार्थ: आंखें न हों तो सारा संसार अंधकार में डूब जाता है। आंखों से ही हम सारे संसार के सौंदर्य को देखते हैं और उस सौंदर्य का निर्माण करने वाले को याद करते हैं।
दुष्ट पर उपकार नहीं करें
प्रत्युपकारभयादनार्य: शत्रुर्भवति।
भावार्थ : उपकार का बदला चुकाने के भय से दुष्ट व्यक्ति शत्रु बन जाता है। दुष्ट व्यक्ति उपकार को भी अपना अपमान समझता है। वह अहसान फरामोश होता है। कहीं उपकार का बदला न चुकाना पड़ जाए, यह सोचकर वह शत्रुता मोल ले लेता है।
सज्जन के साथ उपकार
स्वल्पमप्युपकारकृते प्रत्युपकारं कर्तुमार्यो न स्वपिति।
भावार्थ : सज्जन थोड़े से उपकार के बदले बड़ा उपकार करने की इच्छा से सोता भी नहीं। किसी सज्जन के साथ यदि कोई छोटा-सा उपकार कर दे तो वह सज्जन बदले में उससे भी बड़ा उपकार करने की चिंता में खोया रहता है। वह यथाशीघ्र उपकार का बदला चुकाना चाहता है।
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