रायपुर. कोरोना महामारी का सबसे ज्यादा असर स्कूली बच्चों की पढ़ाई पर पड़ा है. स्कूलों के बंद होने के बाद करीब 2 सालों तक ऑनलाइन कक्षाएं लगती रही हैं. ऐसे में बच्चों को लगातार कई घंटों तक स्क्रीन के सामने बैठकर अपनी कक्षाएं अटेंड करनी पड़ रही हैं. इसका बच्चों की सेहत पर भी जोरदार असर देखने को मिल रहा है. लगातार स्क्रीन में नजरें गढ़ाए रहने से बच्चों की आंखों की शक्ति कमजोर हो रही है.
हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा शुरू किए गए अंधत्व निवारण अभियान के आंकड़ों से इसका खुलासा हुआ है. इस अभियान के आंकड़ों की मानें तो पिछले एक साल में करीब 24 हजार बच्चों को चश्मा लगाना पड़ा है. बता दें कि छत्तीसगढ़ सरकार ने अंधत्व निवारण अभियान शुरू किया है. इसके तहत 2021-22 में प्रदेश के 23731 स्कूली बच्चों की आंखें जांच में कमजोर पाईं गई. इन बच्चों को चश्मा लगाया गया है.
स्क्रीन टाइन बढ़ने से पड़ रहा गहरा असर
बता दें कि ऑनलाइन क्लासेस की वजह से स्क्रीन टाइम बढ़ गया है. इस कारण बच्चों के सामने मायोपिया और हाइपरोपिया नाम की मुसीबत खड़ी हो रही है. लगातार स्क्रीन टाइम बढ़ने के कारण बच्चे निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष के शिकार हो रहे हैं. वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि बच्चे स्कूली पढ़ाई के अलावा भी स्क्रीन के सामने रहते हैं. साथ ही बच्चों की आदत में शुमार होता जा रहा है. वहीं बच्चों के पेरेंट्स की भी चिंता बढ़ गई है. बच्चों की आंखें कमजोर होने का खतरा लगातार सताता रहता है.
जानें क्या कहते हैं डॉक्टर्स
अंधत्व निवारण अभियान के नोडल अधिकारी डॉ सुभाष मिश्रा बताते हैं कि कोरोना काल की वजह से अधिकांश काम ऑनलाइन होने लगा है. जिससे स्क्रीन पर लंबे समय तक बने रहना हमारी आदत और मजबूरी बन चुकी है. स्कूलों से लेकर कोचिंग तक और घर से लेकर दफ्तर तक लोग घंटों-घंटे तक ऑनलाइन ही पढ़ाई और काम कर रहे हैं.
जिससे निकट दृष्टि दोष और दूर दृष्टि दोष के अलावा आंखों में ड्राइनेस, मसल का फटीक होना, कम्प्यूटर विजन सिंड्रोम जैसी समस्या भी हो रही है. जिससे बचने के लिए जानकार सलाह भी दे रहे हैं. जिसमें हर आधे घंटे के अंतराल में दूर के ऑब्जेक्ट को देखना, बेवजह स्क्रीन पर समय ना बिताना प्रमुख रूप से शामिल है. वहीं डॉक्टर्स ने बताया कि बच्चों की आंखों का ध्यान पेरेंट्स को भी रखने की जरूरत है.
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