नईदिल्ली I सुप्रीम कोर्ट के सामने एक अनूठा मामला आया है। हत्या के एक मामले में दोषी घोषित हो चुके एक शख्स ने वारदात के 40 साल और दोषसिद्धि के 36 साल बाद अब खुद को नाबालिग बताते हुए सजा कम करने की अपील की है। उम्रकैद के सजायाफ्ता याचिकाकर्ता का कहना है कि वारदात के समय वह नाबालिग था और इसके चलते उसे अधिकतम 3 साल की सजा मिलनी चाहिए।
56 वर्षीय याचिकाकर्ता ने नाबालिग होने का दावा इलाहाबाद हाईकोर्ट में 35 साल बाद दोषसिद्धि के खिलाफ दायर अपनी अपील खारिज होने के बाद किया है।
दोषी ठहराए जा चुके आरोपी ने इतने लंबे समय बाद अपने नाबालिग होने का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के आधार पर उठाया है, जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि कोई भी आरोपी नाबालिग होने का मुद्दा किसी भी समय उठा सकता है।
जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के सामने पेश याचिका में याचिकाकर्ता अवधेश ने कहा कि हत्या की वारदात वर्ष 1981 में हुई थी। उसने कहा कि उसका जन्म 1965 में हुआ था और इस वारदात के समय वह करीब 16 वर्ष का था। अवधेश ने सीतापुर के जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड की रिपोर्ट का भी हवाला दिया, जिसमें घटना के समय उसके नाबालिग होने की बात कही गई थी।
अवधेश का कहना है कि इसके चलते उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का लाभ मिलना चाहिए और उसकी सजा का निर्धारण इसी आधार पर होना चाहिए। सनद रहे कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत नाबालिग को जेल में नहीं रखा जाता बल्कि उसे अधिकतम तीन साल तक बाल सुधार गृह में रखने का प्रावधान है।
1981 में हुई हत्या के इस मामले में वर्ष 1985 में निचली अदालत ने अवधेश व कुछ अन्य लोगों को दोषी ठहराया था। इसके खिलाफ की गई अपील को वर्ष 2020 में हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।
यूपी सरकार को भी दिया था शीर्ष अदालत ने नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने दोषी के नाबालिग होने के दावे पर उत्तर प्रदेश सरकार को भी नोटिस जारी कर पक्ष रखने के लिए कहा था। पीठ ने पाया कि दोषी ने नाबालिग होने का दावा उमरिया कलां के प्राथमिक विद्यालय स्कूल के प्रमाणपत्र के आधार पर किया है। उस प्रमाणपत्र में याचिकाकर्ता की जन्मतिथि 12 फरवरी, 1965 दर्ज है। वहीं, यूपी सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे में कहा गया कि आधार कार्ड में याचिकाकर्ता की उम्र एक जनवरी, 1965 दर्ज है।
इसलिए उलझ रही है बात
आधार कार्ड और स्कूल प्रमाणपत्र में अलग-अलग जन्मतिथि के अलावा कई अन्य कारण से भी याचिकाकर्ता की सही उम्र तय करने का मसला उलझ रहा है। दरअसल शीर्ष अदालत की पीठ ने पाया कि जिस स्कूल रिकॉर्ड के आधार पर याचिकाकर्ता ने घटना के समय नाबालिग होने का दावा किया है, उससे जुड़े मूल दस्तावेज अब उपलब्ध नहीं हैं।
साथ ही वर्ष 1976 की राजस्व खतौनी में याचिकाकर्ता की उम्र 14 साल दर्ज की गई है। रिकॉर्ड में जन्मतिथि अलग-अलग होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे में सत्र न्यायाधीश से नाबालिग के दावे की जांच कराना जरूरी है। लिहाजा संबंधित सत्र न्यायालय जांच कर दो महीने में रिपोर्ट पेश करे।
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