रायपुर। हसदेव के जंगली इलाकों में मौजूद काले हीरे (कोयले) पर कारोबारी घरानों और सरकारों की नजर है। हालात ये हैं कि संरक्षित इलाका होने के बाद भी इस हिस्से में खनन हो रहा है। अब नौबत ये आ चुकी है कि खनन बढ़ा तो सिंचाई और पीने के पानी का संकट पैदा होगा। हाल ही में इस हिस्से की स्टडी पर्यावरण और वन संरक्षण के लिए काम करने वाली दो संस्थाओं ने किया। इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन (ICFRE) और वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) ने इन हिस्सों में स्टडी की है।
सामाजिक कार्यकर्ता और पेशे से वकील सुदीप श्रीवास्तव के दखल की वजह से सुप्रीम कोर्ट के कहने पर यह स्टडी करवाई गई थी। श्रीवास्तव ने बताया कि दोनों ही संस्थानों ने अपनी स्टडी में पाया है कि हसदेव अरण्य के जिस हिस्से में राजस्थान सरकार के लिए अडाणी समूह कोयला का खनन करता है, वहां घना जंगल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि खनन के बढ़ने से यहां जंगली जीवों को नुकसान होगा, हसदेव बांगो बांध की क्षमता पर असर होगा। पीने के पानी और सिंचाई का संकट पैदा होगा। इससे कोरबा, रायगढ़ और जांजगीर के बड़े हिस्से के लोगों की परेशानी बढ़ेगी। ये जानते हुए भी अडाणी समूह को खनन की अनुमति सरकार दे रही है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ की सरकारों के बीच हो रहा यह समझौता प्रदेश का बड़ा नुकसान करेगा।
सुदीप श्रीवास्तव ने बताया कि ICFRE ने स्टडी में तो कहा है कि इस इलाके में खनन से नुकसान है मगर रिपोर्ट के आखिर में कहा गया है कि हसदेव में 4 ब्लॉक में खनन कर लीजिए बाकी में बाद में विचार किया जा सकता है। इसी रिपोर्ट में एक तरफ भारी नुकसान होने की बात कही गई है और दूसरी ओर अनुमति देने की बात भी है, यह विरोधाभासी है। अधिवक्ता सुदीप बताते हैं कि ICFRE की इस स्टडी का खर्च राजस्थान विद्युत मंडल ने उठाया है इसलिए इस रिपोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं। जबकि WII ने तो अपनी रिपोर्ट में साफ पूरे इलाके को नो गो करने और खनन आगे नहीं बढ़ाने की बात कही है। उस रिपोर्ट को सरकार मान नहीं रही है।
नो गो एरिया बन गया खनन का प्राइम लोकेशन
सुदीप बताते हैं कि 2009 में देश में सरकारों ने पता लगाया कि 85 कोयले के ऐसे भंडार हैं जहां घने जंगल नहीं हैं। 15 प्रतिशत हिस्से में नदियां और घने जंगल हैं। इन हिस्सों को खनन के प्रोजेक्ट से दूर रखने को कहा गया। इन्हें नो गो एरिया कहा गया। तब हसदेव का इलाका पूरी तरह से नो गो था। जंगलों से भरा हुआ था। 2012 में राजस्थान विद्युत मंडल को यहां कोल ब्लॉक मिल गया, तब एनजीटी में चुनौती दी गई। साल 2014 में अपील स्वीकारते हुए खनन की अनुमति खारिज की गई। छत्तीसगढ़ में पूर्व की भाजपा और मौजूदा कांग्रेस सरकार इन इलाकों में खनन को अपनी सहमति दे रही है। पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे इसे लेकर मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में अब भी जारी है
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