नई दिल्ली: केंद्र सरकार द्वारा लाए गए 3 कृषि कानूनों पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित कमिटी के सदस्य अनिल घनवटे (Anil Ghanwate) ने सीलबंद रिपोर्ट को सोमवार (21 मार्च 2022) को सार्वजनिक कर दिया है। रिपोर्ट में दावा किया गया कि पूरे देश के 86 फीसदी किसान संगठन सरकार के तीनों कृषि कानूनों से खुश थे। ये किसान संगठन लगभग 3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
उल्लेखनीय है कि यह रिपोर्ट ऐसी समय में आई है जब कृषि कानूनों के वापसी के भी 5 माह गुजर चुके हैं। आपको याद होगा जब कुछ किसान संगठनों ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को घेर रखा था, हिंसा-हुड़दंग की खबरें लगातार आ रही थी तब कई लोगों ने इस मामले में दो टूक फैसले नहीं लेने पर सर्वोच्च न्यायालय की आलोचना भी की थी। हालाँकि, अब इस रिपोर्ट की उतनी प्रासंगिकता नहीं रह गई है। इन तीनों कृषि कानूनों के विरोध में कुछ किसानों के प्रदर्शन के मद्देनज़र सरकार ने नवंबर 2021 में इन कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर दिया था।
बता दें कि यह रिपोर्ट शीर्ष अदालत में गत वर्ष 21 मार्च को सीलबंद लिफाफे में सबमिट कर दी गई थी, मगर इस रिपोर्ट में क्या था, इस संबंध में लोगों को कुछ पता नहीं था। सोमवार को कमिटी के एक सदस्य अनिल घनवटे ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। अनिल घनवटे ने कहा कि, ’19 मार्च, 2021 को हमने सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट सौंपी। हमने न्यायालय को तीन बार पत्र लिखकर रिपोर्ट जारी करने का आग्रह किया। मगर हमें कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।’ वे आगे कहते हैं कि, ‘मैं आज यह रिपोर्ट जारी कर रहा हूँ। तीन कानूनों को रद्द कर दिया गया है। इसलिए अब कोई प्रासंगिकता नहीं है।’ उनके अनुसार, रिपोर्ट भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए नीतियाँ बनाने में सहायता करेगी।
घनवटे ने आगे कहा कि कानूनों को रद्द करके नरेंद्र मोदी सरकार ने बड़ी सियासी भूल की है। घनवटे ने माना है कि इस रिपोर्ट से किसानों को कृषि कानूनों के फायदे के बारे में समझाया जा सकता था और इनको निरस्त होने से रोका जा सकता था। बता दें कि सर्वोच्च न्यायालय ने 12 जनवरी 2021 को किसान आंदोलन को लेकर एक कमिटी गठित की थी। इस कमिटी में कृषि विशेषज्ञ अशोक गुलाटी, डॉ. प्रमोद कुमार जोशी और अनिल घनवटे को सदस्य बनाया गया था। शीर्ष अदालत ने 4 सदस्यीय टीम बनाई थी, मगर किसान नेता भूपिंदर सिंह मान ने इससे अपने आप को अलग कर लिया था।
घनवटे के अनुसार, सीलबंद रिपोर्ट में भी कृषि कानूनों को निरस्त न करने की सलाह दी थी। घनवट ने कहा है कि इन कृषि कानूनों को वापस लेना या लंबे समय तक लागू न करना, उन लोगों की भावनाओं के खिलाफ है जो इसका मौन समर्थन करते हैं। घनवटे में कहा कि इस रिपोर्ट को तैयार करने से पहले समिति के सामने जो 73 कृषि संगठन से वार्ता हुई थी, ये संगठन देश के साढ़े 3 करोड़ कृषकों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इनमें से 61 किसान संगठनों ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए कृषि कानूनों का समर्थन किया था। ज्यादातर आंदोलनकारी किसान पंजाब और उत्तर भारत से आए थे, जहाँ के लिए MSP एक अहम पहलू है। मगर इन किसानों को वामपंथी नेताओं ने भ्रमित किया। साथ ही ये भी भ्रम फैलाया कि इससे MSP खत्म हो जाएगी। जबकि कानून में कुछ भी ऐसा नहीं था। अनिल घनवटे ने कहा कि उत्तर भारत के जिन किसानों में कृषि कानूनों को लागू नहीं होने दिया उन्होंने खुद की आमदनी को बढ़ाने का अवसर खो दिया।
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