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कटघोरा वन मंडल के केंदई पसान रेंज में गजराजो का आतंक, ग्रामीणों के चार मकान तोड़े,,

छ,ग कोरबा जिला के कटघोरा वन मंडल अंतर्गत केंदई पसान रेंज के ग्राम चोटिया, नवापारा, परला, लालपुर, घुचापुर, लमना, अमाटिकरा, देवमट्टी, हरमोड़, खरखड़ी पारा, पोडीखुर्द, रोदे, लाद, फुलसर, कोरबी, सरमा, तनेरा, जल्के, पनगवा, हरदेवा, बर्रा, बेतलो, इस तरह दर्जनों ग्रामों में लगभग 50 से 70 हाथियों का झुंड विचरण कर रहा है, जिसके कारण लोनार हाथियों द्वारा मकानों को निशाना बनाया जा रहा है, इन ग्रामों में हाथियों का झुंड लगभग 3 वर्षों से डेरा जमाया हुआ है, हाथियों के उत्पात को लेकर कुछ दिन पूर्व गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा संबंधित वन मंडल अधिकारी के कार्यशैली को लेकर विरोध प्रदर्शन किया गया था,

किंतु इन उत्पाती हाथों से ग्राम वासियों को अब तक नहीं मिला राहत, आए दिन ग्रामीणों का आशियाना हाथियों द्वारा उजाले जा रहे हैं, कटघोरा वन मंडल के संसाधनों को लेकर भी अनेक बार सवाल उठाए गए हैं हाथियों से बचाव हेतु राज्य सरकार द्वारा गजराज वाहन के रूप में दो तीन वाहन उपलब्ध कराई गई है जिससे वन कर्मियों द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में जाकर पेट्रोलिंग करते हुए ग्रामीणों को हाथियों की सूचना देने के साथ-साथ सुरक्षित स्थानों में जाने को मदद की जाती है किंतु विगत कई महीनों से गजराज वाहन 407 कटघोरा अनुमंडल परिसर में महीनों से खराब स्थिति में खड़ी है जो  कबाड़ में तब्दील होता दिखाई दे रहा है, बीती रात पोड़ी उपरोड़ा ब्लॉक के ग्राम पंचायत अमाटिकरा देवमट्टी ग्राम के 4 ग्रामीणों के मकानों को तोड़ा जिसकी शिकायत संबंधित वन कर्मियों को दी गई है, इस तरह इस क्षेत्र में आए दिन ग्रामीण जन हाथियों के प्रताड़ना के शिकार रोजाना हो रहे हैं किंतु प्रशासन द्वारा आज तक हाथियों के बचाव हेतु सार्थक कदम नहीं उठाया गया, लेमरू एलीफेंट करीडोर राजनीतिक साजिशों के कागजों में दफन है

आइए जानते हैं लेमरू करीडोर क्या है ,

हाल ही में छत्तीसगढ़ सरकार ने लेमरू हाथी रिज़र्व क्षेत्र को 1,995 वर्ग किमी. से घटाकर 450 वर्ग किमी. तक रखने का प्रस्ताव दिया है।

वर्ष 2007 में केंद्र सरकार ने 450 वर्ग किमी. वन्य क्षेत्र में लेमरू हाथी रिज़र्व के निर्माण की अनुमति दी तथा वर्ष 2019 में राज्य सरकार ने इस क्षेत्र को 1,995 वर्ग किमी. तक विस्तारित करने का फैसला किया।
प्रमुख बिंदु
परिचय :

यह रिज़र्व छत्तीसगढ़ के कोरबा ज़िले में स्थित है।
रिज़र्व का लक्ष्य हाथियों को स्थायी आवास प्रदान करने के साथ-साथ  मानव-वन्यजीव संघर्ष को रोकना तथा संपत्ति के विनाश को कम करना है।
इससे पूर्व  अक्तूबर 2020 में राज्य सरकार ने वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 (WLPA) की धारा 36A के अंतर्गत रिज़र्व (संरक्षित क्षेत्र/ रिज़र्व) को अधिसूचित किया था।
धारा 36A में एक विशेष प्रावधान है जो संघ सरकार को संरक्षित क्षेत्र/ रिज़र्व के रूप में अधिसूचित की जाने वाली भूमि के केंद्र से संबंधित क्षेत्रों के मामले में अधिसूचना की प्रक्रिया में एक अधिकार देती है।
हाथी रिज़र्व WLPA के तहत स्वीकृत ​नहीं हैं।
रिज़र्व  क्षेत्र को कम करने का कारण:

रिज़र्व के अंतर्गत प्रस्तावित क्षेत्र हसदेव अरण्य जंगलों का हिस्सा है, साथ ही यह एक  अधिक विविधतापूर्ण बायोज़ोन है जो कोयले के भंडार में भी समृद्ध है।
इस क्षेत्र के 22 कोयला खदानों/ब्लॉकों में से 7 को पहले ही आवंटित किया जा चुका है, जबकि तीन में उत्खनन कार्य जारी है तथा अन्य चार में उत्खनन  की प्रक्रिया की दिशा में कार्यरत हैं।
आरक्षित क्षेत्र को विस्तारित करने में सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि कई कोयला खदानें अनुपयोगी हो जाएंगी।
रिज़र्व का महत्त्व:

अकेले उत्तरी छत्तीसगढ़ 240 से अधिक हाथियों का आवास स्थल है। पिछले 20 वर्षों में राज्य में 150 से अधिक हाथियों की मौत हुई है, जिसमें 16 हाथियों की मृत्यु जून से अक्तूबर 2020 के मध्य हुई है।
छत्तीसगढ़ राज्य में पाए जाने वाले हाथी अपेक्षाकृत नए हैं। हाथियों ने वर्ष 1990 में अविभाजित मध्य प्रदेश में विचरण शुरू किया।
जबकि मध्य प्रदेश में झारखंड से आने वाले जानवरों के विचरण पर अंकुश लगाने की नीति थी। छत्तीसगढ़ के गठन के बाद औपचारिक नीति के अभाव के चलते हाथियों को राज्य के उत्तर और मध्य भागों में एक गलियारे के रूप में उपयोग करने को अनुमति प्रदान की गई।
चूँकि ये जानवर अपेक्षाकृत नए थे, इसलिये मानव-पशु संघर्ष तब शुरू हुआ जब हाथी भोजन की तलाश में बसे हुए क्षेत्रों में भटकने लगे।

विनोद जायसवाल
विनोद जायसवाल
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